कवरेज इण्डिया पर गाँधी जी के हत्या के पीछे की अनसुनी कहानी नाथूराम गोडसे की जुबानी

गांधी जी व गोंडसे की फाइल फोटो



अपने दर्शकों के लिए कवरेज इण्डिया की विशेष पेशकश, जरूर पढ़ें।

'भारत सरकार ने गांधी के अनशन के कारण पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये न देने का अपना निर्णय बदल दिया। तब मुझे यह विश्वास हो गया कि गांधी जी की पाकिस्तान-परस्ती के आगे जनता के मत को कोई महत्व नहीं।' )

-नथूराम गोडसे



गांधी जी ने देश को छलकर देश के टुकड़े किए। क्योंकि ऐसा न्यायालय या कानून नहीं था, जिसके आधार पर ऐसे अपराधी को दंड दिया जा सकता, इसलिए मैंने गांधीजी को गोली मारी। उनको दंड देने का केवल यही एक तरीका रह गया था।

-नथूराम गोडसे


नाथूराम गोडसे का इक़बाल -ए- जुर्म
 '२० जनवरी, १९४८ को गांधी जी के प्रार्थना-स्थल पर जो विस्फोट हुआ और जिसके लिए मदनलाल पकड़ा गया, वह घटना ३० जनवरी, १९४८ की गांधी-वध की घटना, इन दोनों घटनाओ का अन्योन्याश्रित संबंध नहीं है। यह एक षड्यंत्र था, इस आरोप की पुष्टि के लिए अभियोजकों ने जो प्रमाण प्रस्तुत किए हैं, उनसे वह आरोप सिद्ध नहीं हो पाता है। ३० जनवरी की घटना का उत्तरदायी केवल मैं ही हूँ। अन्य समय में भी मैंने न किसी के साथ षड्यन्त्र किया है और न किसी की सहायता की है। अतएव षड्यंत्र का आरोप मैं अस्वीकार करता हूँ।

अवैध रूप से (पिस्तौल) अपने पास रखने का आरोप नथूराम ने स्वीकार किया। पिस्तौल दिल्ली में ही उसने खरीदी, यह उसकी स्वीकृति थी। उसका विवरण देते समय अपने निवेदन के अनुच्छेद, १५ और १६ में नथूराम ने कहा- 'मैं यह बताना आवश्यक समझता हूँ कि मैं दिल्ली क्यों और किस प्रकार आया? इस बात को तो मैं सदा बिना छिपाये कहता रहा हूँ कि मैं गांधी जी के सिद्धान्तों के विरोधी सिद्धान्तों का प्रचार कर रहा हूँ। '



गांधी-वध के सम्बन्ध में क्या पहले कोई कुछ जानता था। इसकी छानबीन करते समय गांधी जी की पौत्री श्रीमती मनुबेनगांधी की एक गवाही हुई।वे गांधीजी के साथ सदा रहती थीं। उन्होंने कहा कि ३० जनवरी, १९४८ को दोपहर के लगभग बारह बजे नथूराम बिरला-भवन पर आया था। उसको किसी ने रोका नहीं था, क्योंकि लोग आते-जाते रहते थे और आने वाला व्यक्ति कोई विशेष है, ऐसा उस समय नहीं लगा। उस आने में भी किसी को कोई विशेषता नहीं लगी, क्योंकि गांधी जी जहाँ रहते थे, सोते थे, भोजन करते थे,वे स्थान देखने के लिए लोग आया करते थे। नथूराम भी आया था। संभवत: वह पिछले द्वार से आया होगा। कई व्यक्ति गांधी जी के दर्शन के लिए इस प्रकार आते थे। उन्हें कोई रोकता नहीं था। गांधी जी उस समय धूप का आनन्द ले रहे थे और यदि नथूराम के मन में होता तो वह वहीं पर उनके ऊपर गोली दागता। श्रीमती मनुबेन ने कहा, निश्चित है कि वह नथूराम ही था, क्योंकि सायंकाल को नथूराम ने गोलियाँ दागीं उस समय उन्होंने उसे पहचाना। उनकी धारणा है कि जब दोपहर को नथूराम आया था तब गांधी जी के प्रच्छन्न तेज से वह चकाचौंध हुआ था।


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